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Sau baar chaman mahka by Sufi Tabassum: Ghazal (in Hindi)

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-                   ग़ज़ल सौ बार चमन महका, सौ बार बहार आई, दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई. एक लहज़ा बहे आंसू, एक लहज़ा हंसी आई, सीखे हैं नए दिल ने अंदाज़े शिकेबाई. ये रात की ख़ामोशी ये आलमे तन्हाई, फिर दर्द उठा दिल में फिर याद तेरी आई. इस आलमे वीरां में क्या अंजुमन आराई, दो रोज़ की महफ़िल है एक उम्र की तन्हाई. रोने से क्या है हासिल अय दिले सौदाई, इस पार भी तन्हाई उस पार भी तन्हाई. इस मौसमे गुल ही से बहके नहीं दीवाने, साथ अब्रे बहारां के वह ज़ुल्फ भी लहराई. हर दर्दे मुहब्बत से उलझा है ग़मे हस्ती, क्या क्या हमें याद आया जब याद तेरी आई. चर्के वह दिए दिल को महरुमिए क़िस्मत ने, अब हिजर भी तन्हाई और वस्ल भी तन्हाई. जलवों के तमन्नाई जलवों को तरसते हैं, तस्कीन को रोएंगे जलवों के तमन्नाई. देखे हैं बहुत हमने हंगामे मुहब्बत के, आग़ाज़ भी रुसवाई अंजाम भी रुसवाई. दुनिया ही फ़क़त मेरी हालत पे नहीं चौंकी, कुछ तेरी भी आंखों में हल्की सी चमक आई. औरों की मुहब्बत के दोहराए हैं अफ़सान...