Tere ishq ki intihaa by Allama Iqbal (in Hindi)
ग़ज़ल तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूं, मेरी सादगी देख क्या चाहता हूं. सितम हो कि हो वादा ए बे हिजाबी, कोई बात सब्र आज़मा चाहता हूं. यह जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को, कि मैं आपका सामना चाहता हूं. ज़रा सा तो दिल हूं मगर शोख़ इतना, वहीं लन तरानी सुना चाहता हूं. कोई दम का मेहमां हूं ऐ अहले महफ़िल, चिराग़ ए सहर हूं बुझा चाहता हूं. भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी, बड़ा बे अदब हूं सज़ा चाहता हूं. अल्लामा इक़बाल मुश्किल अल्फ़ाज़: ☆ इंतिहा --- आख़िर, हद, अंजाम. ☆ सितम --- ज़ुल्म, सख़्ती. ☆ बे हिजाबी --- बे पर्दा, चेहरा दिखाना. ☆ सब्र आज़मा --- सब्र आज़माने वाली. ☆ जन्नत --- स्वर्ग. ☆ ज़ाहिद --- धार्मिक, इबादत गुज़ार. ☆ शोख़ --- चंचल. ☆ लन तरानी --- शोखी, ढींग, तू मुझे नहीं देख सकता. ☆ कोई दम --- कुछ पल. ☆ अहले महफ़िल --- महफ़िल के लोग. ☆ चिराग़ ए सहर --- सुबह का चिराग़ ☆ बज़्म --- महफ़िल. ☆ बे अदब --- बद तमीज़. -----------------------------