Posts

Showing posts from 2020

Kal chaudhvi ki raat thi by Ibne Insha (In Hindi)

Image
-                   ग़ज़ल कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा, कुछ ने कहा ये चांद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा. हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए, हम हंस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तेरा. इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफिलें, हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तेरा. कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएं मगर, जंगल तेरे परबत तेरे बस्ती तेरी सेहरा तेरा. हम और रस्म ए बंदगी आशुफ्तगी उफ़्तादगी, एहसान है क्या क्या तेरा ऐ हुस्न ए बेपरवाह तेरा. बेशक उसी का दोश है कहता नहीं ख़ामोश है, तो आप कर ऐसी दवा बीमार हो अच्छा तेरा. दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ के टिक गए, अल्ताफ़ की बारिश तेरी इकराम का दरिया तेरा. ऐ बेदरेग़ व बेअमां हम ने कभी की है फ़ुग़ां, हम को तेरी वहशत सही हम को सही सौदा तेरा. तू बावफ़ा तू मेहरबां हम और तुझ से बदगुमां, हम ने तो पूछा था ज़रा ये वस्फ़ क्यों ठहरा तेरा. हम पर ये सख़्ती नज़र हम है फ़क़ीर ए रह गुज़र, रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा. हां हां तेरी सूरत हसीं लेकिन तू ऐसा भी नहीं, एक श...

Mera naseeb hue talkhiyaan by Azhar Durrani (in Hindi)

Image
-                   ग़ज़ल मेरा नसीब हुएं तल्ख़ियां ज़माने की, किसी ने ख़ूब सज़ा दी है मुस्कुराने की.       मेरे ख़ुदा मुझे तारिक़ का हौसला हो अता,       ज़रूरत आन पड़ी कश्तियां जलाने की. मैं देखता हूं हर एक सिम्त पंछियों का हुजूम, इलाही ख़ैर हो सैयाद के घराने की.       क़दम क़दम पे सलीबों के जाल फैला दो,       कि सरकशी को तो आदत है सर उठाने की. शरीक़ ए जुर्म ना होते तो मुख़बरी करते, हमें ख़बर है लुटेरों के हर ठिकाने की.       हज़ार हाथ गिरेबां तक आ गए अज़हर,       अभी तो बात चली भी ना थी ज़माने की.                 अज़हर दुर्रानी मुश्किल अल्फ़ाज़:       ☆ तल्ख़ियां --- कड़वाहट, दुश्मनी.       ☆ तारिक़ --- सुबह का सितारा, सख़्त हादसा, रात को चलने वाला.       ☆ अता --- पाना, देना.       ☆ सिम्त --- दिशा.       ☆ हुजूम --- जमघट, ...

Aah ko chahiye by Mirza Ghalib (in Hindi)

Image
                  ग़ज़ल आह को चाहिए एक उमर असर होने तक, कौन जीता है तेरी जुल्फ़ के सर होने तक. दाम हर मौज में है हालक़ा ए सदकामे नहंग, देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक. आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब, दिल का क्या रंग करूं ख़ून ए जिगर होने तक. हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन, ख़ाक हो जायेंगे हम तुझ को ख़बर होने तक. परतवे ख़ूर से है शबनम को फ़ना की तालीम, मैं भी हूं एक इनायत की नज़र होने तक. यक नज़र बेश नहीं फ़ुरसत ए हस्ती ग़ाफिल, गर्मी ए बज़्म है इक रक़्शे शरर होने तक. ग़मे हस्ती का असद किससे हो जुज़ मर्ग इलाज, शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक.                 मिर्ज़ा ग़ालिब मुश्किल- अल्फ़ाज़:      ☆  आह- बददुआ.      ☆ सर- जीतना.      ☆ दाम- जाल.      ☆ मौज- लहर.      ☆ हलक़ा- इलाका.      ☆ सदकाम- सौ मुंह वाला.      ☆ नहंग- मगरमच्छ.      ☆ हालक़ा ए ...