Aah ko chahiye by Mirza Ghalib (in Hindi)
ग़ज़ल आह को चाहिए एक उमर असर होने तक, कौन जीता है तेरी जुल्फ़ के सर होने तक. दाम हर मौज में है हालक़ा ए सदकामे नहंग, देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक. आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब, दिल का क्या रंग करूं ख़ून ए जिगर होने तक. हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन, ख़ाक हो जायेंगे हम तुझ को ख़बर होने तक. परतवे ख़ूर से है शबनम को फ़ना की तालीम, मैं भी हूं एक इनायत की नज़र होने तक. यक नज़र बेश नहीं फ़ुरसत ए हस्ती ग़ाफिल, गर्मी ए बज़्म है इक रक़्शे शरर होने तक. ग़मे हस्ती का असद किससे हो जुज़ मर्ग इलाज, शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक. मिर्ज़ा ग़ालिब मुश्किल- अल्फ़ाज़: ☆ आह- बददुआ. ☆ सर- जीतना. ☆ दाम- जाल. ☆ मौज- लहर. ☆ हलक़ा- इलाका. ☆ सदकाम- सौ मुंह वाला. ☆ नहंग- मगरमच्छ. ☆ हालक़ा ए ...