Mera naseeb hue talkhiyaan by Azhar Durrani (in Hindi)
- ग़ज़ल मेरा नसीब हुएं तल्ख़ियां ज़माने की, किसी ने ख़ूब सज़ा दी है मुस्कुराने की. मेरे ख़ुदा मुझे तारिक़ का हौसला हो अता, ज़रूरत आन पड़ी कश्तियां जलाने की. मैं देखता हूं हर एक सिम्त पंछियों का हुजूम, इलाही ख़ैर हो सैयाद के घराने की. क़दम क़दम पे सलीबों के जाल फैला दो, कि सरकशी को तो आदत है सर उठाने की. शरीक़ ए जुर्म ना होते तो मुख़बरी करते, हमें ख़बर है लुटेरों के हर ठिकाने की. हज़ार हाथ गिरेबां तक आ गए अज़हर, अभी तो बात चली भी ना थी ज़माने की. अज़हर दुर्रानी मुश्किल अल्फ़ाज़: ☆ तल्ख़ियां --- कड़वाहट, दुश्मनी. ☆ तारिक़ --- सुबह का सितारा, सख़्त हादसा, रात को चलने वाला. ☆ अता --- पाना, देना. ☆ सिम्त --- दिशा. ☆ हुजूम --- जमघट, झुंड, गोल. ☆ इलाही --- खुदा, ईश्वर. ☆ ख़ैर --- अच्छाई, भलाई. ☆ सलीब --- सूली. ☆ सरकशी --- बग़ावत, बेवफ़ाई, घमंड. ☆ शरीक ए जुर्म --- जुर्म में शरीक. ☆ मुख़बरी --- जासूसी. ☆ गिरेबां --- गिरेबान, गले का कपड़ा.