Kamar bandhein hue chalne:Ghazal by Insha Allah Khan (in Hindi)
- ग़ज़ल कमर बांधे हुए चलने को यां सब यार बैठे हैं, बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तैयार बैठे हैं. ना छेड़ ऐ निकहत ए बाद ए बहारी राह लग अपनी, तुझे अठखेलियां सूझी हैं हम बेज़ार बैठे हैं. तसव्वुर अर्श पर है और सर है पाए साक़ी पर, ग़रज़ कुछ और धुन में इस घड़ी मय ख़्वार बैठे हैं. ये अपनी चाल है उफ़तादगी से अब के पहरो तक, नज़र आया जहां पर साया ए दीवार बैठे हैं. बसान ए नक़्श ए पाए रहरवां कोए तमन्ना में, नहीं उठने की ताक़त क्या करें लाचार बैठे हैं. कहां सब्र व तहम्मुल आह नंग व नाम क्या शै है, यहां रो पीट कर इन सब को हम यकबार बैठे हैं. नजीबों का अजब कुछ हाल है इस दौर में यारो, जहां पूछो यही कहते हैं हम बेकार बैठे हैं. कहीं बोसे की मत जुर्रत दिला कर बैठियो उन से, अभी इस हद को वह कैफ़ी नहीं होशियार बैठे हैं. नई ये वज़ा शरमाने की सीखी आज है तुमने, हमारे पास साहब वरना यूं सौ बार बैठे हैं. भला गर्दिश फ़लक की चैन देती है किसे इंशा, ग