Tujhi ko jo yahan jalwa by Khwaja Meer Dard

               ग़ज़ल

तुझी को जो यहां जलवा फरमा न देखा,
बराबर है दुनिया को देखा न देखा.


मेरा गुंचा ए दिल है वह दिल गिरफ्ता,
के जिस को किसी ने कभी वा न देखा.


यगाना है तू आह ए बेगानगी में,
कोई दूसरा और ऐसा न देखा.


अज़ीयत मुसीबत मलामत बालाएं,
तेरे इश्क़ में हम ने क्या क्या न देखा.


किया मुझ को दाग़ों ने सर्व ए चरागां,
कभी तू ने आकर तमाशा न देखा.


तग़ाफ़ुल ने तेरे ये कुछ दिन दिखाएं,
इधर तूने लेकिन न देखा न देखा.


हिजाब ए रूखे यार थे आप ही हम,
खुली आंख जब कोई पर्दा न देखा.


शब व रोज़ ऐ दर्द दर पे हों उस के,
किसी ने जिसे यहां न समझा न देखा.


     ख़्वाजा मीर 'दर्द'



मुश्किल अल्फ़ाज़:
     ☆जलवा फरमा --- किसी के सामने अपनी पूरी खूबसूरती या जलाल के साथ आना.


     ☆गुंचा ए दिल --- दिल की कली.


     ☆दिल गिरफ्ता --- उदास या जकड़ा हुआ दिल.


     ☆वा --- खुला हुआ, ज़ाहिर कर देना.


     ☆यागाना --- अपने आप में अकेला, जिसके जैसा दूसरा ना हो.


     ☆आह ए बेगानगी --- बेगानों, गैरों की आह में.


     ☆अज़ीयत --- तकलीफ.


     ☆मलामत --- डांट फटकार, ताना मारना.


     ☆बालाएं --- आफतें, कहर.


     ☆दाग़ों --- जख्मों के निशान.


     ☆सर्व ए चरागां --- रोशनी से जगमग पेड़, या रोशनी की नुमाइश.


     ☆सर्व --- एक छोटा सजावटी पेड़, नुमाइश.


     ☆ तग़ाफ़ुल --- अनदेखी करना.


     ☆हिजाब ए रूखे़ यार --- यार या महबूब के चेहरे का पर्दा.


     ☆शब व रोज़ --- रात और दिन.
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