Lagta nahin hai ji mera by Bahdur Shah Zafar (in Hindi)

                ग़ज़ल

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में

किस की बनी है आलम ए नापाएदार में


बुलबुल को बाग़बां से न सय्याद से गिला

क़िस्मत में क़ैद लिखी थी फ़सल ए बहार में


कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें

इतनी जगह कहां है दिल ए दाग़दार में


कांटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बां

ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में


एक शाख़ ए गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमान

कांटे बिछा दिए हैं दिल ए लाला ए ज़ार में


उम्र ए दराज़ मांग के लाए थे चार दिन

दो आरज़ू में कट गए दो इंतज़ार में


दिन ज़िन्दगी के ख़त्म हुए शाम हो गई

फैला के पाओं सोएंगे कुंज ए मज़ार में


कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़न के लिए

दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू ए यार में


           बहादुर शाह 'ज़फ़र'



मुश्किल अल्फ़ाज़:
     ☆
दयार.... सरज़मीन.

     ☆आलम ए नापाएदार.... फ़ानी दुनिया.

     ☆बाग़बां.... बाग़ का रखवाला.

     ☆सय्याद.... परिंदों का शिकारी.

     ☆फसले बहार --- बाहार का मौसम.

     ☆हसरत.... अरमान, ख़्वाहिश.

     ☆दिल ए दाग़दार.... दागों से भरा दिल.

     ☆शाख़ ए गुल.... फूलों की शाख़.

     ☆शादमान.... खु़श.

     ☆दिल ए लाला ए ज़ार.... फूलों के बगीचे नुमा दिल.

     ☆उम्र ए दराज़.... लंबी उम्र.

     ☆आरज़ू.... ख़्वाहिश.

     ☆कुंज ए मज़ार.... मज़ार की जगह.

     ☆बदनसीब.... बदक़िस्मत.

     ☆कू ए यार.... यार की गली.
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LAGTA NAHI HAI JI MERA(h)





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