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Showing posts from 2018

Ibtidaye ishq hai rota hai kya: Ghazal by Meer Taqi Meer (in Hindi)

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.           ग़ज़ल इब्तिदा ए इश्क़ है रोता है क्या, आगे आगे देखिए होता है क्या. क़ाफ़िले में सुबह के एक शोर है, यानी ग़फ़िल हम चले सोता है क्या. सब्ज़ होती ही नहीं ये सर ज़मीं, तुख़्म ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या. ये निशाने इश्क़ हैं जाते नहीं, दाग़ छाती के अब्स धोता है क्या. गैरत ए युसुफ़ है ये वक़्त अज़ीज़, मीर इसको राएगां खोता है क्या.                मीर तक़ी मीर नोट  : मीर तकी मीर के असल दीवान में पहला शेर कुछ बदला है जो कि नीचे दिया गया है, लेकिन ऊपर ग़ज़ल में वही शेर दिया गया है जो लोगो में सदियों से मकबूल हैं. ये पता नहीं चलता है कि ये बदलाव उन्होंने खुद बाद में किया था या दूसरे लोगो ने.            राह ए दौरे इश्क़ में रोता है क्या,            आगे आगे देखिए होता है क्या. मुश्किल अल्फ़ाज़:      ☆  इब्तिदा --- शुरुवात.      ☆  क़ाफ़िला ---  मुसाफ़िरों का गोल.      ☆  गाफ़िल --- लापरवाह.      ☆  सब्ज़ --- हरा भरा.      ☆  तुख़्म --- बीज.      ☆  राएगां --- बेकार. ----------------------------------- -----

Kamar bandhein hue chalne:Ghazal by Insha Allah Khan (in Hindi)

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-              ग़ज़ल कमर बांधे हुए चलने को      यां  सब यार बैठे हैं, बहुत आगे गए  बाक़ी      जो हैं तैयार बैठे हैं. ना छेड़ ऐ निकहत ए बाद ए बहारी      राह लग अपनी, तुझे  अठखेलियां  सूझी  हैं      हम बेज़ार बैठे हैं. तसव्वुर अर्श पर है और      सर है पाए साक़ी पर, ग़रज़ कुछ और धुन में      इस घड़ी मय ख़्वार बैठे हैं. ये अपनी चाल है उफ़तादगी से      अब के पहरो तक, नज़र आया जहां पर      साया ए दीवार बैठे हैं. बसान ए नक़्श ए पाए      रहरवां कोए तमन्ना में, नहीं उठने की ताक़त      क्या करें लाचार बैठे हैं. कहां सब्र व तहम्मुल      आह नंग व नाम क्या शै है, यहां रो पीट कर इन सब      को हम यकबार बैठे हैं. नजीबों का अजब कुछ      हाल है इस दौर में यारो, जहां पूछो यही कहते      हैं  हम बेकार बैठे हैं. कहीं बोसे की मत जुर्रत      दिला कर बैठियो उन से, अभी इस हद को वह      कैफ़ी नहीं होशियार बैठे हैं. नई ये वज़ा शरमाने की      सीखी आज है तुमने, हमारे पास साहब      वरना  यूं सौ बार बैठे हैं. भला गर्दिश फ़लक की      चैन देती है किसे इंशा, ग

Sau baar chaman mahka by Sufi Tabassum: Ghazal (in Hindi)

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-                   ग़ज़ल सौ बार चमन महका, सौ बार बहार आई, दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई. एक लहज़ा बहे आंसू, एक लहज़ा हंसी आई, सीखे हैं नए दिल ने अंदाज़े शिकेबाई. ये रात की ख़ामोशी ये आलमे तन्हाई, फिर दर्द उठा दिल में फिर याद तेरी आई. इस आलमे वीरां में क्या अंजुमन आराई, दो रोज़ की महफ़िल है एक उम्र की तन्हाई. रोने से क्या है हासिल अय दिले सौदाई, इस पार भी तन्हाई उस पार भी तन्हाई. इस मौसमे गुल ही से बहके नहीं दीवाने, साथ अब्रे बहारां के वह ज़ुल्फ भी लहराई. हर दर्दे मुहब्बत से उलझा है ग़मे हस्ती, क्या क्या हमें याद आया जब याद तेरी आई. चर्के वह दिए दिल को महरुमिए क़िस्मत ने, अब हिजर भी तन्हाई और वस्ल भी तन्हाई. जलवों के तमन्नाई जलवों को तरसते हैं, तस्कीन को रोएंगे जलवों के तमन्नाई. देखे हैं बहुत हमने हंगामे मुहब्बत के, आग़ाज़ भी रुसवाई अंजाम भी रुसवाई. दुनिया ही फ़क़त मेरी हालत पे नहीं चौंकी, कुछ तेरी भी आंखों में हल्की सी चमक आई. औरों की मुहब्बत के दोहराए हैं अफ़साने, बात अपनी मुहब्बत की होंठों पे नहीं आई.

Bulbul Jab Se Toone Do by Ameer Meenai: Ghazal (in Hindi)

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-            ग़ज़ल जब से  बुलबुल  तूने दो  तिनके लिए, टूटती  हैं  बिजलियां   इन   के   लिए. तुंद  मय और  ऐसे कमसिन  के लिए, साक़िया  हल्की सी  ला इन के  लिए. है  जवानी  ख़ुद  जवानी  का  सिंगार, सादगी  गहना  है  इस सिन  के  लिए. पाक   रखा  पाक  दामन  से  ह़िसाब, बोसे  भी गिन के  दिए  गिन  के लिए. सब  ह़सीं   हैं  ज़ाहिदों  को  नापसंद, अब  कोई  ह़ूर आएगी  इन  के  लिए. कौन    वीराने    में    देखेगा    बहार, फूल  जंगल  में  खिले  किन  के लिए. दिन  मेरा   रोता   है  मेरी   रात   को, रात  रोती  है   मेरी   दिन   के   लिए. सारी   दुनिया  के  हैं  वह  मेरे  सिवा, मैंने  दुनिया छोड़  दी  जिन  के  लिए. बाग़बां  कलियां  हो   हलके  रंग  की, भेजनी  हैं   एक  कमसिन  के   लिए. वस़्ल  का  दिन और  इतना मुख़्तसर, दिन  गिने  जाते थे इस दिन  के लिए. स़ुबह का सोना जो हाथ आता 'अमीर', भेजते  तोहफ़ा  मुअज़्ज़िन   के  लिए.             'अमीर' मीनाई मुश्किल अल्फ़ाज़:      ☆ तुंद  --- तेज़.      ☆ कमसिन --- कम उम्र.      ☆ साक़िया --- साक़ी.

Ibne Mariyam by Mirza Ghalib : Ghazal (in Hindi)

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       -                    ग़ज़ल इब्ने   मरियम  हुआ   करे   कोई, मेरे   दुःख   की    दवा करे  कोई. चाल  जैसे  कड़ी कमान का तीर, दिल  में  ऐसे  कि  जा  करे  कोई. शरअ  व  आईन  पर मदार सही, ऐसे  क़ातिल  का  क्या करे कोई. बात   पर  वां  ज़ुबान  कटती  है, वो   कहे   और  सुना  करे  कोई. बक रहा हूँ जुनूं में क्या क्या कुछ, कुछ  न  समझे  ख़ुदा  करे  कोई. न  सुनो   गर   बुरा   कहे    कोई, न  कहो   अगर  बुरा  करे   कोई. कौन  है  जो  नहीं   है  हाजतमंद, किसकी  हाजत  रवा   करे  कोई. रोक   लो   गर  ग़लत  चले  कोई, बख़्श  दो  गर  ख़ता   करे   कोई. क्या  किया  ख़िज़्र ने  सिकंदर  से, अब   किसे   रहनुमा   करे   कोई. जब  तवक्को ही उठ गयी ग़ालिब, क्यों  किसी  का  गिला  करे  कोई.                      मिर्ज़ा ग़ालिब मुश्किल अल्फ़ाज़ :       ☆ इब्ने मरियम  --- ईसा मसीह, मरियम के बेटे, जो बीमारों का इलाज करके राहत पहुंचाते थे.      ☆ शरअ --- क़ानून या तरीक़ा(इस्लामी).      ☆ आईन --- संविधान, नियम-क़ायदा.      ☆ मदार --- क़ायम, भरोसा.      ☆ वां --- वहां.      ☆ हाजतमंद --- ज़रूरत मंद.

Sare Jahan Se Achha by Allama Iqbal: Ghazal (in Hindi)

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-           तराना ए हिन्द सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा, हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिस्तां हमारा. परबत वो सबसे ऊंचा हमसाया आसमां का, वह संतरी हमारा वह पासबां हमारा. ग़ुरबत में हो अगर हम रहता है दिल वत़न में, समझो वहीं हमें भी दिल हो जहां हमारा. गोदी में खेलती हैं उसकी हज़ारों नदियां, गुलशन है जिनके दम से रश्क ए जहां हमारा. ऐ आबरुदे गंगा वह दिन है याद तुझको, उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा. मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा. यूनान व मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाक़ी नामो निशां हमारा. कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे ज़मां हमारा. इक़बाल कोई मह़रम अपना नहीं जहां में, मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहां हमारा.              अल्लामा 'इक़बाल' ----------------------------------- मुश्किल अल्फ़ाज़:     ☆ गुलिस्तां --- बाग़ (चिड़ियों का घर).    ☆ पासबां --- पहरेदार.    ☆ ग़ुरब

Hungama Hai Kyun Barpa by Akbar Allahabadi :Ghazal (in Hindi)

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-             ग़ज़ल    हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है,    डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है.    ना तजुर्बाकारी से  वाइज़ की ये बातें हैं,    इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है.    उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे है बेगाना,    मक़सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है.    ऐ शौक़ वही मय पी ऐ होश ज़रा सो जा,    मेहमान ए नज़र इस दम एक बर्क़ ए तजल्ली है.    वां दिल में के सदमे दो यां जी में कि सब सह लो,    उनका भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है.    हर ज़र्रा चमकता है अनवारे इलाही से,    हर सांस यह कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है.    सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं,    बुत हमको कहे काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है.    तालीम का शोर ऐसा तहज़ीब का गुल इतना,    बरकत जो नहीं होती नीयत की ख़राबी है.    सच कहते है शेख़ अकबर है ताअते हक़ लाज़िम,    हां तर्के मय व शाहिद ये उन की बुज़ुर्गी है.               अकबर इलाहाबादी मुश्किल अल्फाज़:      ☆ वाइज़ --- उपदेशक, ज्ञ

Insha Ji Utho by Ibne Insha: Ghazal(in Hindi)

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-                 ग़ज़ल      इंशा जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या,      वह़शी को सुकूं से क्या मत़लब जोगी का नगर में ठिकाना क्या.      इस दिल के दरीदा दामन को देखो तो सही सोचो तो सही,      जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली का फैलाना क्या.      शब बीती चांद भी डूब चला ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में,      क्यों देर गए घर आए हो सजनी से करोगे बहाना क्या.      फिर हिजर की लंबी रात मियां संजोग की तो यही एक घड़ी,      जो दिल में है लब पर आने दो शरमाना क्या घबराना क्या.      उस रोज़ जो उनको देखा है अब ख़्वाब का आलम लगता है,      उस रोज़ जो उन से बात हुई वह बात भी थी अफ़साना क्या.      उस ह़ुस्न के सच्चे मोती को हम देख सके पर छू ना सके,      जिसे देख सके पर छू न सके वह दौलत क्या वह ख़ज़ाना क्या.      उसको भी जला दुखते हुए मन एक शोला लाल भभूका बन,      यूं आंसू बन बह जाना क्या यूं मिट्टी में मिल जाना क्या.      रहते हो जो हम से दूर बहुत मजबूर हो तुम मजबूर बहुत,      हम समझो का समझ

Ulti Ho Gayi Sab Tadbeerein by Meer Taqi Meer :Ghazal (in Hindi)

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-               ग़ज़ल      उलटी हो गई सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया,      देखा इस बीमारी ए दिल ने आख़िर काम तमाम किया.      अहदे जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद,      यानी रात बहुत थे जागे स़ुबह़ हुई आराम किया.      नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की,      चाहते हैं सो आप करें हैं हमको अबस बदनाम किया.      सरज़द हम से बेअदबी तो वहशत में भी कम ही हुई,      कोसों उस की ओर गए पर सजदा हर हर गाम किया.      किसका काअबा कैसा क़िब्ला कौन ह़रम है क्या अह़राम,      कूचे के उसके बाशिन्दों ने सबको यहीं से सलाम किया.      काश अब बुर्क़ा मुंह से उठावे वरना फिर क्या ह़ासिल है,      आंख मूंदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया.      ह़र्फ़ नहीं जां बख़्शी में उसकी ख़ूबी अपनी क़िस्मत की,      हम से जो पहले कह भेजा सो  मरने का पैग़ाम किया.      ऐसे आहूए रम ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी,      सिह़र किया ऐजाज़ किया  जिन

Ek Baar Kaho Tum Meri Ho by Ibne Insha :Geet (in Hindi)

-               गीत: हम घूम चुके बस्ती बन में एक आस की फांस लिए मन में कोई साजन हो कोई प्यारा हो कोई दीपक हो कोई तारा हो जब जीवन रात अंधेरी हो      इक बार कहो तुम मेरी हो.. जब सावन बादल छाए हो जब फागुन फूल खिलाए हो जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो      इक बार कहो तुम मेरी हो.. हां दिल का दामन फैला है क्यूं गोरी का दिल मैला है हम कब तक पीत के धोखे में तुम कब तक दूर झरोखे में कब दीद से दिल को सेरी हो      इक बार कहो तुम मेरी हो.. क्या झगड़ा सूद ख़सारे का ये काज नहीं बंजारे का सब सोना रूपा ले जाए सब दुनिया दुनिया ले जाए तुम एक मुझे बहुतेरी हो      इक बार कहो तुम मेरी हो...            इब्ने इंशा ------------------------------ मुश्किल अल्फ़ाज़:      ☆ पीत --- प्रीत, प्रेम, प्यार.      ☆ दीद --- दीदार, दर्शन.      ☆ सेरी --- संतुष्टि, असूदगी.      ☆ सूद --- ब्याज.    

Ye Na Thi Hamari Qismat by Mirza Ghalib :Ghazal (in Hindi)

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-           ग़ज़ल      यह न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल ए यार होता,      अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता.      तेरे वादे पर जिए हम तो यह जान झूठ जाना,      कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता.      कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर ए नीम कश को,      ये ख़लिश कहां से होती जो जिगर के पार होता.      तेरी नाज़ुकी से जाना कि बंधा था अहद ए बोदा,      कभी तू ना तोड़ सकता अगर उस्तवार होता.      यह कहां की दोस्ती है कि बने है दोस्त नास़ेह़,      कोई चारासाज़ होता कोई ग़म गुसार होता.      रग ए संग से टपकता वह लहू कि फिर न थमता,      जिसे ग़म समझ रहे हो यह अगर शरार होता.      हुए मर के जो रुसवा हुए क्यूं न ग़र्क़ ए दरिया,      न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता.      उसे कौन देख सकता कि यगाना है वह यकता,      जो दुई की बू भी होती तो कहीं दो चार होता.      ग़म अगरचे जां गुसिल है पे कहां बचें कि दिल है,      ग़म ए इश्क़ गर ना होता ग़म ए रोज़गार होता.      कहूं किस से मैं कि क्या है शब ए

Hue Namwar Benishaan by Ameer Meenai (in Hindi)

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–             ग़ज़ल हुए नामवर बे निशां कैसे कैसे, ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे. तेरी बांकी चितवन ने चुन चुन के मारे, नुकीले सजीले जवां कैसे कैसे. न गुल हैं न ग़ुंचे न बूटे न पत्ते, हुए बाग़ नज़रे ख़िज़ा कैसे कैसे. यहां दर्द से हाथ सीने पे रखा, वहां उनको गुज़रे गुमां कैसे कैसे. हज़ारों बरस की है बुढ़िया ये दुनिया, मगर ताकती है जवां कैसे कैसे. तेरे जां निसारों के तेवर वही हैं, गले पर हैं ख़ंजर रवां कैसे कैसे. जवानी का स़दक़ा ज़रा आंख उठाओ, तड़पते हैं देखो जवां कैसे कैसे. ख़िज़ा लूट ही ले गई बाग़ सारा, तड़पते रहे बाग़बां कैसे कैसे. अमीर अब सुख़न की बड़ी क़द्र होगी, फले फूलेंगे नुकत ए दां कैसे कैसे.                    'अमीर' मीनाई ------------------------------------- मुश्किल अलफ़ाज़ :      ☆ नामवर --- नामवाला.       ☆चितवन --- नज़र, तिरछी निगाह.       ☆ ग़ुंचे --- कली.       ☆ ख़िज़ा --- पतझड़.       ☆ गुमां --- शक, अनुमान, गरुर.       ☆ जां निसार ---