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Showing posts from May, 2018

Ibne Mariyam by Mirza Ghalib : Ghazal (in Hindi)

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       -                    ग़ज़ल इब्ने   मरियम  हुआ   करे   कोई, मेरे   दुःख   की    दवा करे  कोई. चाल  जैसे  कड़ी कमान का तीर, दिल  में  ऐसे  कि  जा  करे  कोई. शरअ  व  आईन  पर मदार सही, ऐसे  क़ातिल  का  क्या करे कोई. बात   पर  वां  ज़ुबान  कटती  है, वो   कहे   और  सुना  करे  कोई. बक रहा हूँ जुनूं में क्या क्या कुछ, कुछ  न  समझे  ख़ुदा  करे  कोई. न  सुनो   गर   बुरा   कहे    कोई, न  कहो   अगर  बुरा  करे   कोई. कौन  है  जो  नहीं   है  हाजतमंद, किसकी  हाजत  रवा   करे  कोई. रोक   लो   गर  ग़लत  चले  कोई,...

Sare Jahan Se Achha by Allama Iqbal: Ghazal (in Hindi)

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-           तराना ए हिन्द सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा, हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिस्तां हमारा. परबत वो सबसे ऊंचा हमसाया आसमां का, वह संतरी हमारा वह पासबां हमारा. ग़ुरबत में हो अगर हम रहता है दिल वत़न में, समझो वहीं हमें भी दिल हो जहां हमारा. गोदी में खेलती हैं उसकी हज़ारों नदियां, गुलशन है जिनके दम से रश्क ए जहां हमारा. ऐ आबरुदे गंगा वह दिन है याद तुझको, उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा. मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा. यूनान व मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाक़ी नामो निशां हमारा. कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे ज़मां हमारा. इक़बाल कोई मह़रम अपना नहीं जहां में, मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहां हमारा.              अल्लामा 'इक़बाल' ----------------------------------- मुश्किल अल्फ़ाज़:     ☆ गुलिस्ता...

Hungama Hai Kyun Barpa by Akbar Allahabadi :Ghazal (in Hindi)

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-             ग़ज़ल    हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है,    डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है.    ना तजुर्बाकारी से  वाइज़ की ये बातें हैं,    इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है.    उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे है बेगाना,    मक़सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है.    ऐ शौक़ वही मय पी ऐ होश ज़रा सो जा,    मेहमान ए नज़र इस दम एक बर्क़ ए तजल्ली है.    वां दिल में के सदमे दो यां जी में कि सब सह लो,    उनका भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है.    हर ज़र्रा चमकता है अनवारे इलाही से,    हर सांस यह कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है.    सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं,    बुत हमको कहे काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है.    तालीम का शोर ऐसा तहज़ीब का गुल इतना,    बरकत जो नहीं होती नीय...

Insha Ji Utho by Ibne Insha: Ghazal(in Hindi)

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-                 ग़ज़ल      इंशा जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या,      वह़शी को सुकूं से क्या मत़लब जोगी का नगर में ठिकाना क्या.      इस दिल के दरीदा दामन को देखो तो सही सोचो तो सही,      जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली का फैलाना क्या.      शब बीती चांद भी डूब चला ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में,      क्यों देर गए घर आए हो सजनी से करोगे बहाना क्या.      फिर हिजर की लंबी रात मियां संजोग की तो यही एक घड़ी,      जो दिल में है लब पर आने दो शरमाना क्या घबराना क्या.      उस रोज़ जो उनको देखा है अब ख़्वाब का आलम लगता है,      उस रोज़ जो उन से बात हुई वह बात भी थी अफ़साना क्या.      उस ह़ुस्न के सच्चे मोती को हम देख सके पर छू ना सके,      जिसे देख सके पर छू न सके वह दौलत क्या वह ख़ज़ाना ...

Ulti Ho Gayi Sab Tadbeerein by Meer Taqi Meer :Ghazal (in Hindi)

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-               ग़ज़ल      उलटी हो गई सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया,      देखा इस बीमारी ए दिल ने आख़िर काम तमाम किया.      अहदे जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद,      यानी रात बहुत थे जागे स़ुबह़ हुई आराम किया.      नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की,      चाहते हैं सो आप करें हैं हमको अबस बदनाम किया.      सरज़द हम से बेअदबी तो वहशत में भी कम ही हुई,      कोसों उस की ओर गए पर सजदा हर हर गाम किया.      किसका काअबा कैसा क़िब्ला कौन ह़रम है क्या अह़राम,      कूचे के उसके बाशिन्दों ने सबको यहीं से सलाम किया.      काश अब बुर्क़ा मुंह से उठावे वरना फिर क्या ह़ासिल है,      आंख मूंदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया.    ...

Ek Baar Kaho Tum Meri Ho by Ibne Insha :Geet (in Hindi)

-               गीत: हम घूम चुके बस्ती बन में एक आस की फांस लिए मन में कोई साजन हो कोई प्यारा हो कोई दीपक हो कोई तारा हो जब जीवन रात अंधेरी हो      इक बार कहो तुम मेरी हो.. जब सावन बादल छाए हो जब फागुन फूल खिलाए हो जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो      इक बार कहो तुम मेरी हो.. हां दिल का दामन फैला है क्यूं गोरी का दिल मैला है हम कब तक पीत के धोखे में तुम कब तक दूर झरोखे में कब दीद से दिल को सेरी हो      इक बार कहो तुम मेरी हो.. क्या झगड़ा सूद ख़सारे का ये काज नहीं बंजारे का सब सोना रूपा ले जाए सब दुनिया दुनिया ले जाए तुम एक मुझे बहुतेरी हो      इक बार कहो तुम मेरी हो...            इब्ने इंशा ------------------------------ मुश्किल अल्फ़ाज़: ...

Ye Na Thi Hamari Qismat by Mirza Ghalib :Ghazal (in Hindi)

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-           ग़ज़ल      यह न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल ए यार होता,      अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता.      तेरे वादे पर जिए हम तो यह जान झूठ जाना,      कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता.      कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर ए नीम कश को,      ये ख़लिश कहां से होती जो जिगर के पार होता.      तेरी नाज़ुकी से जाना कि बंधा था अहद ए बोदा,      कभी तू ना तोड़ सकता अगर उस्तवार होता.      यह कहां की दोस्ती है कि बने है दोस्त नास़ेह़,      कोई चारासाज़ होता कोई ग़म गुसार होता.      रग ए संग से टपकता वह लहू कि फिर न थमता,      जिसे ग़म समझ रहे हो यह अगर शरार होता.      हुए मर के जो रुसवा हुए क्यूं न ग़र्क़ ए दरिया,      न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता.      उसे...

Hue Namwar Benishaan by Ameer Meenai (in Hindi)

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–             ग़ज़ल हुए नामवर बे निशां कैसे कैसे, ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे. तेरी बांकी चितवन ने चुन चुन के मारे, नुकीले सजीले जवां कैसे कैसे. न गुल हैं न ग़ुंचे न बूटे न पत्ते, हुए बाग़ नज़रे ख़िज़ा कैसे कैसे. यहां दर्द से हाथ सीने पे रखा, वहां उनको गुज़रे गुमां कैसे कैसे. हज़ारों बरस की है बुढ़िया ये दुनिया, मगर ताकती है जवां कैसे कैसे. तेरे जां निसारों के तेवर वही हैं, गले पर हैं ख़ंजर रवां कैसे कैसे. जवानी का स़दक़ा ज़रा आंख उठाओ, तड़पते हैं देखो जवां कैसे कैसे. ख़िज़ा लूट ही ले गई बाग़ सारा, तड़पते रहे बाग़बां कैसे कैसे. अमीर अब सुख़न की बड़ी क़द्र होगी, फले फूलेंगे नुकत ए दां कैसे कैसे.                    'अमीर' मीनाई ------------------------------------- मुश्किल अलफ़ाज़ :      ☆ नामवर --- नामवाला.       ☆चितवन --- नज़र, तिरछी निगाह.       ☆ ग़ुंचे ...

Ranjish Hi Sahi by Ahmad Faraz: Ghazal (in Hindi)

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-                 ग़ज़ल रंजिश ही स़ही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ. माना कि मुह़ब्बत का छुपाना है मुह़ब्बत, चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ. जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने, ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ. पहले से मरासिम न स़ही फिर भी कभी तो, रस्मो रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ. किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम, तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ. कुछ तो मेरे पिंदारे मुह़ब्बत का भरम रख, तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ. एक उम्र से हूं लज़्ज़ते गिरिया से भी मह़रूम, अय राहते जां मुझ को रुलाने के लिए आ. अब तक दिले ख़ुश फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें, ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ.                     --- अह़मद फ़राज़ मुश्किल अलफ़ाज़:      ☆ मरासिम --- मेलजोल, बोलचाल.   ...

Tum Jano Tum Ko Ghair Se by Mirza Ghalib: (in Hindi)

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 -                   ग़ज़ल तुम जानो तुम को ग़ैर से      जो रस्मो राह हो, मुझ को भी पूछते रहो      तो क्या गुनाह हो. बचते नहीं मुआख़िज़ा ए      रोज़े हश्र से, क़ातिल अगर रक़ीब है      तो तुम गवाह हो. क्या वह भी बेगुनाह      कश व ह़क़ नाशनास हैं, माना कि तुम बशर नहीं      ख़ुर्शीदो माह हो. उभरा हुआ नक़ाब में है      उनके एक तार, मरता हूं मैं कि यह न       किसी की निगाह हो. जब मयकदा छुटा तो फिर      अब क्या जगह कि क़ैद, मस्जिद हो मदरसा हो      कोई ख़ानक़ाह हो. सुनते हैं जो बहिश्त की      तारीफ़ सब दुरुस्त, लेकिन ख़ुदा करे वह      तेरा जलवा गाह हो. ग़ालिब भी गर न हो तो      कुछ ऐसा ज़रर नहीं, दुनिया हो या रब और      मेरा बादशाह हो.             ...

Ye Arzoo Thi Tujhe Gul by Haider Ali 'Atish': Ghazal (in Hindi)

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-                 गज़ल ये आरज़ू थी तुझे गुल के रुबरू करते, हम और बुलबुले बेताब गुफ़्तगू करते. पयांबर न मय्यसर हुआ तो ख़ूब हुआ, ज़ुबाने ग़ैर से क्या शरह़े आरज़ू करते. मेरी त़रह से मह व मिहर भी हैं आवारा, किसी ह़बीब की ये भी हैं जुस्तजू करते. हमेशा रंग ज़माना बदलता रहता है, सफ़ेद रंग है आख़िर स्याह मू करते. लुटाते दौलते दुनिया को मयकदे में हम, त़लाई साग़रे मय, नुक़रई सबू करते. हमेशा मैं ने गिरेबां को चाक चाक किया, तमाम उम्र रफ़ूगर रहे रफ़ू करते. जो देखते तेरी ज़ंजीरे ज़ुल्फ़ का आलम, असीर होने की आज़ाद आरज़ू करते. बयाज़े गरदने जानां को सुबह़ कहते जो हम, सिताराए सह़री तकमए गुलू करते. ये का'बे से नहीं बेवजह निसबते रुख़े यार, ये बेसबब नहीं मुर्दे को क़िब्ला रु करते. सिखाते नाला ए शबगीर को दरंदाज़ी, ग़मे फ़िराक़ का इस चर्ख़ को अदू करते. वह जाने जां नहीं आता तो ...

Nigahe Yaar Jise Ashna e Raaz by Hasrat 'Mohani': Ghazal (in Hindi)

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-             ग़ज़ल निगाहे यार जिसे      आशना ए राज़ करे, वह क्यों न ख़ूबी ए क़िस्मत      पे अपनी  नाज़ करे. दिलों को फ़िक्र ए दो आलम      से कर दिया आज़ाद, तेरे जुनूं का ख़ुदा      सिलसिला दराज़ करे. ख़िरद का नाम जुनूं पड़ गया      जुनूं का ख़िरद, जो चाहे आप का ह़ुस्न      करिश्मा साज़ करे. तेरे सितम से मैं ख़ुश हूं      कि ग़ालीबन यूं भी, मुझे वह शामिल ए अरबाबे      इम्तियाज़ करे. ग़म ए जहां से जिसे हो      फ़राग़ की ख़्वाहिश, वह उन के दर्द ए मुह़ब्बत      से साज़ बाज़ करे. उम्मीदवार हैं हर सिम्त      आशिक़ों के गिरोह, तेरी निगाह को अल्लाह      दिल नवाज़ करे. तेरे करम का साज़ावार      तो नहीं 'ह़सरत', अब आगे तेरी ख़ुशी है      जो सरफ़राज़ करे.       ...

Sukhe Hue Phool by Ahmad Faraz: Ghazal (in Hindi)

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_           ग़ज़ल अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें, जिस त़रह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें. ढूंढ उजड़े हुए लोगो में वफ़ा के मोती, ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें. ग़मे दुनिया भी ग़म ए  यार में शामिल कर लो, नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें. तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा, दोनों इन्सां है तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें. आज हम दार पे खींचे गये जिन बातों पर, क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें. अब न वह मैं न वह तू है न वह माज़ी है फ़राज़, जैसे दो साये तमन्ना के सराबों में मिलें.             --- अह़मद फ़राज़ मुश्किल अल्फ़ाज़ :      ☆ हिजाब --- पर्दा, नक़ाब.       ☆ दार --- फांसी.       ☆ निसाब --- पाठ्यक्रम, सिलेबस.       ☆ माज़ी --- अतीत, गुज़रा ज़माना.       ☆ सराब ---...

Hum Tujh Se Kis Hawas Ki by Khwaja Meer 'Dard': Ghazal (in Hindi)

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    -     ग़ज़ल हम तुझसे किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें, दिल ही नहीं रहा है कि कुछ आरज़ू करें. मिट जायें एक आन में कसरत नुमाइयां, हम आईने के सामने जब आ के हू करें. तर-दामनी पे शेख़ हमारी ना जा अभी, दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें. सर ता क़दम ज़ुबान हैं जूं शमअ गो कि हम, पर यह कहाँ मजाल जो कुछ गुफ़्तगू करें. हर चन्द आईना हूँ पर इतना हूँ नाक़ुबूल, मुँह फेर ले वह जिसके मुझे रुबरू करें. न गुल को है सबात न हमको है ऐतबार, किस बात पर चमन हवस ए रंग ओ बू करें. है अपनी यह स़लाह की सब ज़ाहिदान ए शहर, ए 'दर्द' आ के बैअत ए दस्त ओ सबू करें.               ख़्वाजा मीर 'दर्द' मुश्किल अल्फ़ाज़:      ☆ फ़लक --- आसमान.      ☆ जुस्तुजू --- तलाश.      ☆ कसरत नुमाइयां --- ज़्यादा नज़र आने वाली चीज़ें.      ☆ वज़ू --- नमाज़ से पहले ख़ास तरह से हाथ पैर मुंह धोना.      ☆ सर ता क़दम  --- सर से पांव तक.   ...

Gul Tera Rang Chura Laye Hain by Ahmad 'Ndeem': Ghazal (in Hindi)

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-             ग़ज़ल गुल तेरा रंग चुरा लाए हैं गुलज़ारों में, जल रहा हूं भरी बरसात की बौछारों में. मुझ से बच के निकल जा मगर ऐ जाने हया, दिल की लौ देख रहा हूं तेरे रुख़सारों में. हुस्न बेग़ाना ए एहसास ए जमाल अच्छा है, ग़ुंचे खिलते हैं तो बिक जाते हैं बाज़ारों में. मेरे कीसे में तो एक सूत की अंटी भी न थी, नाम लिखवा दिया यूसुफ़ के ख़रीदारों में. ज़िक्र करते हैं तेरा मुझ से बा उनवाने जफ़ा चारागर फूल पिरो लाए हैं तलवारों में. ज़ख्म छुप सकते हैं लेकिन मुझे फ़न की सौगंध, ग़म की दौलत भी है शामिल मेरे शाहकारों में. मुन्तज़िर है कोई तीशाए तख़्लीक़ उठाए, कितने असनाम दफ़न हैं कुहसारों में. मुझको नफ़रत से नहीं प्यार से मसलूब करों, मैं भी शामिल हूं मुहब्बत के गुनहगारों में. रुत बदलती है तो मेयार बदल जाते हैं, बुलबुले ख़ार लिए फिरती हैं मिनक़ारों में. चुन ले बाज़ारे हुनर से कोई बहरूप 'नदीम', अब तो फ़नकार भी शामिल हैं अदाकारों में.          अह़मद 'नदीम' क़ासमी मुश्किल अल्फ़ाज़:       ☆गुलज़ार --- फूलों का बग़ीचा. ...