Ranjish Hi Sahi by Ahmad Faraz: Ghazal (in Hindi)

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               ग़ज़ल
रंजिश ही स़ही दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ.

माना कि मुह़ब्बत का छुपाना है मुह़ब्बत,
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ.


जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने,
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ.

पहले से मरासिम न स़ही फिर भी कभी तो,
रस्मो रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ.


किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ.

कुछ तो मेरे पिंदारे मुह़ब्बत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ.


एक उम्र से हूं लज़्ज़ते गिरिया से भी मह़रूम,
अय राहते जां मुझ को रुलाने के लिए आ.


अब तक दिले ख़ुश फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें,
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ.


                   --- अह़मद फ़राज़



मुश्किल अलफ़ाज़:
     ☆ मरासिम --- मेलजोल, बोलचाल.

     ☆ रस्मो रहे --- रीति रिवाज.
     ☆ पिंदार --- घमंड, गरूर.
     ☆ लज़्ज़त --- मज़ा.
     ☆ गिरिया --- रुदन, रोना.
     ☆ मह़रूम --- वंचित.
     ☆ ख़ुश फ़हम --- ख़ुश फ़हमी होना.
     ☆ शमा --- चराग़, मोमबत्ती.
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