Ye Arzoo Thi Tujhe Gul by Haider Ali 'Atish': Ghazal (in Hindi)
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गज़ल
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रुबरू करते,
हम और बुलबुले बेताब गुफ़्तगू करते.
पयांबर न मय्यसर हुआ तो ख़ूब हुआ,
ज़ुबाने ग़ैर से क्या शरह़े आरज़ू करते.
मेरी त़रह से मह व मिहर भी हैं आवारा,
किसी ह़बीब की ये भी हैं जुस्तजू करते.
हमेशा रंग ज़माना बदलता रहता है,
सफ़ेद रंग है आख़िर स्याह मू करते.
लुटाते दौलते दुनिया को मयकदे में हम,
त़लाई साग़रे मय, नुक़रई सबू करते.
हमेशा मैं ने गिरेबां को चाक चाक किया,
तमाम उम्र रफ़ूगर रहे रफ़ू करते.
जो देखते तेरी ज़ंजीरे ज़ुल्फ़ का आलम,
असीर होने की आज़ाद आरज़ू करते.
बयाज़े गरदने जानां को सुबह़ कहते जो हम,
सिताराए सह़री तकमए गुलू करते.
ये का'बे से नहीं बेवजह निसबते रुख़े यार,
ये बेसबब नहीं मुर्दे को क़िब्ला रु करते.
सिखाते नाला ए शबगीर को दरंदाज़ी,
ग़मे फ़िराक़ का इस चर्ख़ को अदू करते.
वह जाने जां नहीं आता तो मौत ही आती,
दिलो जिगर को कहां तक भला लहू करते.
मत पूछ बरगश्ता त़ालअई 'आतिश',
बरसती आग जो बारां की आरज़ू करते.
—ख़्वाजा ह़ैदर अली 'आतिश'
मुश्किल अल्फ़ाज़:
☆ आरज़ू --- इच्छा, ख़्वाहिश.
☆ गुफ़्तगू --- बात चीत.
☆ पायांबर --- संदेशवाहक.
☆ मयस्सर --- ह़ासिल, उपलब्ध.
☆ शरह़े --- व्याख्या करना, बताना.
☆ मह --- चांद.
☆ मिहर --- सूरज.
☆ ह़बीब --- दोस्त, महबूब, चहेता.
☆ जुस्तजू --- तलाश.
☆ स्याह --- काला.
☆ मयकदा --- शराब ख़ाना.
☆ त़लाई --- सुनहरा, सोने का.
☆ साग़र --- जाम का प्याला.
☆ मय --- शराब.
☆ नुक़रई --- चांदी का.
☆ सबू --- सुराही, मटका.
☆ आलम --- हाल, नज़ारा.
☆ असीर --- क़ैदी.
☆ बयाज़ --- सफ़ेदी, गोरापन.
☆ जानां --- महबूब, प्रेमी.
☆ सिताराए सहरी --- सुबह का सितारा.
☆ तकमए गुलू --- गले का बटन.
☆ निसबत --- वास्त़ा, ताल्लुक़.
☆ रुख़ --- चेहरा.
☆ बेसबब --- बेवजह.
☆ क़िब्ला रू --- का'बे की तरफ.
☆ नाला --- फ़रियाद, विनती.
☆ शबगीर --- रात का एक परिंदा जो आधी रात के बाद नरम आवाज़ में बोलता है.
☆ दरंदाज़ी --- बद ज़ुबानी, दख़ल अंदाज़ी.
☆ फ़िराक़ --- जुदाई, अलगाव.
☆ चर्ख़ --- आसमान.
☆ अदू --- दुश्मन.
☆ जाने जां --- महबूब.
☆ लहू --- ख़ून.
☆ बरगश्ता --- फिरा हुआ, बदला हुआ, भटका हुआ.
☆ त़ालअई --- सितारों की चाल, क़िस्मत.
☆ बारां --- बारिश.
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गज़ल
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रुबरू करते,
हम और बुलबुले बेताब गुफ़्तगू करते.
पयांबर न मय्यसर हुआ तो ख़ूब हुआ,
ज़ुबाने ग़ैर से क्या शरह़े आरज़ू करते.
मेरी त़रह से मह व मिहर भी हैं आवारा,
किसी ह़बीब की ये भी हैं जुस्तजू करते.
हमेशा रंग ज़माना बदलता रहता है,
सफ़ेद रंग है आख़िर स्याह मू करते.
लुटाते दौलते दुनिया को मयकदे में हम,
त़लाई साग़रे मय, नुक़रई सबू करते.
हमेशा मैं ने गिरेबां को चाक चाक किया,
तमाम उम्र रफ़ूगर रहे रफ़ू करते.
जो देखते तेरी ज़ंजीरे ज़ुल्फ़ का आलम,
असीर होने की आज़ाद आरज़ू करते.
बयाज़े गरदने जानां को सुबह़ कहते जो हम,
सिताराए सह़री तकमए गुलू करते.
ये का'बे से नहीं बेवजह निसबते रुख़े यार,
ये बेसबब नहीं मुर्दे को क़िब्ला रु करते.
सिखाते नाला ए शबगीर को दरंदाज़ी,
ग़मे फ़िराक़ का इस चर्ख़ को अदू करते.
वह जाने जां नहीं आता तो मौत ही आती,
दिलो जिगर को कहां तक भला लहू करते.
मत पूछ बरगश्ता त़ालअई 'आतिश',
बरसती आग जो बारां की आरज़ू करते.
—ख़्वाजा ह़ैदर अली 'आतिश'
मुश्किल अल्फ़ाज़:
☆ आरज़ू --- इच्छा, ख़्वाहिश.
☆ गुफ़्तगू --- बात चीत.
☆ पायांबर --- संदेशवाहक.
☆ मयस्सर --- ह़ासिल, उपलब्ध.
☆ शरह़े --- व्याख्या करना, बताना.
☆ मह --- चांद.
☆ मिहर --- सूरज.
☆ ह़बीब --- दोस्त, महबूब, चहेता.
☆ जुस्तजू --- तलाश.
☆ स्याह --- काला.
☆ मयकदा --- शराब ख़ाना.
☆ त़लाई --- सुनहरा, सोने का.
☆ साग़र --- जाम का प्याला.
☆ मय --- शराब.
☆ नुक़रई --- चांदी का.
☆ सबू --- सुराही, मटका.
☆ आलम --- हाल, नज़ारा.
☆ असीर --- क़ैदी.
☆ बयाज़ --- सफ़ेदी, गोरापन.
☆ जानां --- महबूब, प्रेमी.
☆ सिताराए सहरी --- सुबह का सितारा.
☆ तकमए गुलू --- गले का बटन.
☆ निसबत --- वास्त़ा, ताल्लुक़.
☆ रुख़ --- चेहरा.
☆ बेसबब --- बेवजह.
☆ क़िब्ला रू --- का'बे की तरफ.
☆ नाला --- फ़रियाद, विनती.
☆ शबगीर --- रात का एक परिंदा जो आधी रात के बाद नरम आवाज़ में बोलता है.
☆ दरंदाज़ी --- बद ज़ुबानी, दख़ल अंदाज़ी.
☆ फ़िराक़ --- जुदाई, अलगाव.
☆ चर्ख़ --- आसमान.
☆ अदू --- दुश्मन.
☆ जाने जां --- महबूब.
☆ लहू --- ख़ून.
☆ बरगश्ता --- फिरा हुआ, बदला हुआ, भटका हुआ.
☆ त़ालअई --- सितारों की चाल, क़िस्मत.
☆ बारां --- बारिश.
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