Sukhe Hue Phool by Ahmad Faraz: Ghazal (in Hindi)
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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद
कभी ख़्वाबों में मिलें,
जिस त़रह सूखे हुए फूल
ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद
कभी ख़्वाबों में मिलें,
जिस त़रह सूखे हुए फूल
किताबों में मिलें.
ढूंढ उजड़े हुए लोगो में
ढूंढ उजड़े हुए लोगो में
वफ़ा के मोती,
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है
ख़राबों में मिलें.
ग़मे दुनिया भी ग़म ए
ग़मे दुनिया भी ग़म ए
यार में शामिल कर लो,
नशा बढ़ता है शराबें
नशा बढ़ता है शराबें
जो शराबों में मिलें.
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़
फ़रिश्तों जैसा,
दोनों इन्सां है तो क्यों इतने
दोनों इन्सां है तो क्यों इतने
हिजाबों में मिलें.
आज हम दार पे खींचे गये
आज हम दार पे खींचे गये
जिन बातों पर,
क्या अजब कल वो ज़माने को
क्या अजब कल वो ज़माने को
निसाबों में मिलें.
अब न वह मैं न वह तू है
अब न वह मैं न वह तू है
न वह माज़ी है फ़राज़,
जैसे दो साये तमन्ना के
जैसे दो साये तमन्ना के
सराबों में मिलें.
--- अह़मद फ़राज़
मुश्किल अल्फ़ाज़:
☆ हिजाब --- पर्दा, नक़ाब.
☆ दार --- फांसी.
☆ निसाब --- पाठ्यक्रम, सिलेबस.
☆ माज़ी --- अतीत, गुज़रा ज़माना.
☆ सराब --- धोखा, भ्रम.
--- अह़मद फ़राज़
मुश्किल अल्फ़ाज़:
☆ हिजाब --- पर्दा, नक़ाब.
☆ दार --- फांसी.
☆ निसाब --- पाठ्यक्रम, सिलेबस.
☆ माज़ी --- अतीत, गुज़रा ज़माना.
☆ सराब --- धोखा, भ्रम.
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