Hum Tujh Se Kis Hawas Ki by Khwaja Meer 'Dard': Ghazal (in Hindi)

    -     ग़ज़ल
हम तुझसे किस हवस की

फ़लक जुस्तुजू करें,
दिल ही नहीं रहा है कि

कुछ आरज़ू करें.

मिट जायें एक आन में
कसरत नुमाइयां,
हम आईने के सामने

जब आ के हू करें.

तर-दामनी पे शेख़

हमारी ना जा अभी,
दामन निचोड़ दें तो

फ़रिश्ते वज़ू करें.

सर ता क़दम ज़ुबान हैं
जूं शमअ गो कि हम,
पर यह कहाँ मजाल जो

कुछ गुफ़्तगू करें.

हर चन्द आईना हूँ

पर इतना हूँ नाक़ुबूल,
मुँह फेर ले वह जिसके

मुझे रुबरू करें.

न गुल को है सबात
न हमको है ऐतबार,
किस बात पर चमन हवस ए

रंग ओ बू करें.

है अपनी यह स़लाह की

सब ज़ाहिदान ए शहर,
ए 'दर्द' आ के बैअत ए

दस्त ओ सबू करें.
 

            ख़्वाजा मीर 'दर्द'



मुश्किल अल्फ़ाज़:
     ☆ फ़लक --- आसमान.
     ☆ जुस्तुजू --- तलाश.
     ☆ कसरत नुमाइयां --- ज़्यादा नज़र आने वाली चीज़ें.
     ☆ वज़ू --- नमाज़ से पहले ख़ास तरह से हाथ पैर मुंह धोना.
     ☆ सर ता क़दम 
--- सर से पांव तक.
     ☆ जूं --- जैसे.
     ☆ शमअ --- मोमबत्ती.
     ☆ गो --- हालांकि.
     ☆ गुफ़्तगू --- बात चीत.
     ☆ नाक़ुबूल --- अस्वीकार.
     ☆ रूबरू --- आमने सामने.
     ☆ सबात --- सब्र, अपनी हालत पर क़ायम रहना.
     ☆ बू --- सुगंध.
     ☆ ज़ाहिदान ए शहर --- शहर के दीनदार (धार्मिक) लोग.
     ☆ बैअत --- धर्म और दुनिया के मसले में किसी के कहे पर चलने की शपथ लेना, ऐसे कहा जाता है कि मैंने फला के हाथ पर बैअत की है यानी अब मैं उसके कहे पर चलने को पाबंद हूं.
     ☆ दस्त --- हाथ.
     ☆ सबू --- सुराही.

     ☆ दस्त ओ सबू --- सुराही का हाथ (पकड़ने वाला कुंडा).
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