Hungama Hai Kyun Barpa by Akbar Allahabadi :Ghazal (in Hindi)
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ग़ज़ल
हंगामा है क्यों बरपा
थोड़ी सी जो पी ली है,
डाका तो नहीं डाला
चोरी तो नहीं की है.
ना तजुर्बाकारी से
वाइज़ की ये बातें हैं,
इस रंग को क्या जाने
पूछो तो कभी पी है.
उस मय से नहीं मतलब
दिल जिससे है बेगाना,
मक़सूद है उस मय से
दिल ही में जो खिंचती है.
ऐ शौक़ वही मय पी
ऐ होश ज़रा सो जा,
मेहमान ए नज़र इस दम
एक बर्क़ ए तजल्ली है.
वां दिल में के सदमे दो
यां जी में कि सब सह लो,
उनका भी अजब दिल है
मेरा भी अजब जी है.
हर ज़र्रा चमकता है
अनवारे इलाही से,
हर सांस यह कहती है
हम हैं तो ख़ुदा भी है.
सूरज में लगे धब्बा
फ़ितरत के करिश्मे हैं,
बुत हमको कहे काफ़िर
अल्लाह की मर्ज़ी है.
तालीम का शोर ऐसा
तहज़ीब का गुल इतना,
बरकत जो नहीं होती
नीयत की ख़राबी है.
सच कहते है शेख़ अकबर
है ताअते हक़ लाज़िम,
हां तर्के मय व शाहिद
ये उन की बुज़ुर्गी है.
अकबर इलाहाबादी
मुश्किल अल्फाज़:
☆ वाइज़ --- उपदेशक, ज्ञान देने वाला.
☆ रंग --- मज़ा.
☆ मय --- शराब.
☆ बेगाना --- अनजाना.
☆ मक़सूद --- मतलब, इरादा.
☆ शौक़ --- आरज़ू, ख्वाहिश, चस्का, उमंग.
☆ मेहमाने नज़र --- आँखों का मेहमान, आँख को प्यारा.
☆ इस दम --- इस पल.
☆ बर्क़े तजल्ली --- बिजली की रौशनी(महबूब का चमकता चेहरा).
☆ वां --- वहाँ.
☆ यां --- यहाँ.
☆ सदमा --- दुःख.
☆ तालीम --- शिक्षा.
☆ तहज़ीब --- संस्कृति, रहन, सहन.
☆ ग़ुल --- हंगामा, चीखम दहाड़.
☆ बरकत --- नेमत, ज़्यादती, लाभ.
☆ नीयत --- इरादा(मन की भावना).
☆ ज़र्रा --- कण.
☆ अनवारे इलाही --- खुदा का नूर(रौशनी).
☆ फितरत --- प्रकृति, स्वभाव.
☆ काफ़िर --- ईश्वर का इंकार करने वाला.
☆ शेख़ --- संत, सूफी.
☆ ताअते हक़ --- इबादत(प्रार्थना) का हक़.
☆ लाज़िम --- ज़रुरी.
☆ तर्के मय व शाहिद --- शराब और महबूब को छोड़ना.
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हंगामा है क्यों बरपा
थोड़ी सी जो पी ली है,
डाका तो नहीं डाला
चोरी तो नहीं की है.
ना तजुर्बाकारी से
वाइज़ की ये बातें हैं,
इस रंग को क्या जाने
पूछो तो कभी पी है.
उस मय से नहीं मतलब
दिल जिससे है बेगाना,
मक़सूद है उस मय से
दिल ही में जो खिंचती है.
ऐ शौक़ वही मय पी
ऐ होश ज़रा सो जा,
मेहमान ए नज़र इस दम
एक बर्क़ ए तजल्ली है.
वां दिल में के सदमे दो
यां जी में कि सब सह लो,
उनका भी अजब दिल है
मेरा भी अजब जी है.
हर ज़र्रा चमकता है
अनवारे इलाही से,
हर सांस यह कहती है
हम हैं तो ख़ुदा भी है.
सूरज में लगे धब्बा
फ़ितरत के करिश्मे हैं,
बुत हमको कहे काफ़िर
अल्लाह की मर्ज़ी है.
तालीम का शोर ऐसा
तहज़ीब का गुल इतना,
बरकत जो नहीं होती
नीयत की ख़राबी है.
सच कहते है शेख़ अकबर
है ताअते हक़ लाज़िम,
हां तर्के मय व शाहिद
ये उन की बुज़ुर्गी है.
अकबर इलाहाबादी
मुश्किल अल्फाज़:
☆ वाइज़ --- उपदेशक, ज्ञान देने वाला.
☆ रंग --- मज़ा.
☆ मय --- शराब.
☆ बेगाना --- अनजाना.
☆ मक़सूद --- मतलब, इरादा.
☆ शौक़ --- आरज़ू, ख्वाहिश, चस्का, उमंग.
☆ मेहमाने नज़र --- आँखों का मेहमान, आँख को प्यारा.
☆ इस दम --- इस पल.
☆ बर्क़े तजल्ली --- बिजली की रौशनी(महबूब का चमकता चेहरा).
☆ वां --- वहाँ.
☆ यां --- यहाँ.
☆ सदमा --- दुःख.
☆ तालीम --- शिक्षा.
☆ तहज़ीब --- संस्कृति, रहन, सहन.
☆ ग़ुल --- हंगामा, चीखम दहाड़.
☆ बरकत --- नेमत, ज़्यादती, लाभ.
☆ नीयत --- इरादा(मन की भावना).
☆ ज़र्रा --- कण.
☆ अनवारे इलाही --- खुदा का नूर(रौशनी).
☆ फितरत --- प्रकृति, स्वभाव.
☆ काफ़िर --- ईश्वर का इंकार करने वाला.
☆ शेख़ --- संत, सूफी.
☆ ताअते हक़ --- इबादत(प्रार्थना) का हक़.
☆ लाज़िम --- ज़रुरी.
☆ तर्के मय व शाहिद --- शराब और महबूब को छोड़ना.
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